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इतिहास

गोपाल मंदिर झाबुआ का निर्माण वर्ष 1970 में हुआ. मंदिर निर्माण पश्चात् मंदिर सुचारू रूप से चलाने हेतु सर्वसमिति से गोपाल मंदिर ट्रस्ट का गठन किया गया. गोपाल मंदिर के निर्माण में भक्त मंडल व ट्रस्ट के सभी सदस्यों के साथ ही ट्रस्ट में संरक्षक एवं वरिष्ट ट्रस्टी श्री विश्वनाथजी त्रिवेदी मोटा भाई की महत्वपूर्ण भूमिका रही. पं पूज्य श्री विश्वनाथ जी त्रिवेदी (मोटा भाई ) का जन्म मध्य भारत के सुदूर पश्चिम शेत्र में स्थित झाबुआ में श्री ललिता शंकर जी त्रिवेदी के सामान्य ब्राह्मन परिवार में १०-०९-१९१८ को हुआ था। 
       श्री मोटा भाई बचपन से ही गंभीर एवं चिन्तनशील रहे । इन्हे दर्शन , मनोविज्ञान,ज्योतिष का अध्यन करने के साथ ही सुयोग्य अध्यात्मिक गुरु कि तलाश रही । इसी क्रम में एक बार रेल यात्रा के दोरान एक विभूति से इनकी मुलाकात हुई । अल्प बातचीत में विभूति ने श्री मोटा भाई के अतीत जीवन कि बाते बताई और अध्यात्मिक जीवन कि भविष्य वाणी करने के साथ उत्कृष्ट व समर्थ गुरु के सानिध्य में अध्यात्मिक साधना करने का सुअवसर शीघ्र ही मिलने कि बात कही। 
        गुजरात स्थित दाहोद में इनकी एक बहन का विवाह हुआ था तथा इनके बहनोई श्री मंगू भाई त्रिवेदी ने श्री मोटा भाई को गुजरात में जन्त्राल में प्रसिद्ध समर्थ गुरु प .पूज्य श्री रामशंकर जी जानी के बारे में बताया । चर्चा के अंतर्गत इन्हे आभास हुआ के जिन समर्थ गुरु कि इन्हे तलाश थी तथा रेल में मिले उस विभूति ने आध्यात्मिक गुरु के शीघ्र ही मिलने कि बात कही थी वे शायद यही है। वे अपने बहनोई के साथ जन्त्राल में प .पूज्य श्री रामशंकर जी जानी (बडे बापजी) के पास पहुचे । प्रथम भेट में ही चिरकाल से परिचित जैसा स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त हुआ। बडे बापजी ने जन्त्राल में ऋषिकुल कि स्थापना करे चुनिन्दा शिष्यों को भजनों ,उपदेशो, सत्संग व पत्रों के माध्यम से दीक्षित किया । 
         सदगुरु श्री रामशंकर जी जानी ने दिनांक १६-०२-१९४७ को देह त्याग किया। उनके देहत्याग के पश्चात् उनके जयेष्ट पुत्र प .पूज्य श्री घनश्याम जी जानी ने बडे बापजी कि आध्यात्मिक विरासत को सत्संग ,सूत्रों से पोषित , पल्वित व फलित किया । बडे बापजी कि तरह ही प .पूज्य श्री घनश्याम प्रभु ने मोटा भाई को गले लगाया व अपार स्नेह दिया। घनश्याम प्रभु व मोटा भाई का साथ १४ वर्ष का रहा तथा दिनांक ०८-०७-१९६० को मात्र ४० वर्ष कि आयु में प .पूज्य श्री घनश्याम प्रभु(छोटे बापजी) ने अपना देहत्याग किया। प .पूज्य घनश्याम प्रभु के देहत्याग के बाद गुरु पत्नी जिन्हे भक्त गण प्रेम व आदर से गोपाल के नाम से पुकारते थे का आसीन स्नेह मोटा भाई को मिला ।
          वर्ष १९६८ में दो भक्त माताश्री गोपाल के आशीर्वाद के लिए भरूच माँ श्री के निवास पहुचे । माताश्री ने दोनों भक्तो को झाबुआ में गुरूभइयो कि झोपडी बांधने कि द्रष्टि से जमीन कार्य करने को कहा । माँ गोपाल से चर्चा में भक्तो ने कालोनी के निर्माण के साथ एक बड़ा कामन हाल चाहिए जिसपर केवल हाल बनाने कि सहमती दी गयी। सामूहिक भजन व पूजन के लिए भी एक स्थल मंदिर के रूप में बनाने का आग्रह किया जिस पर माँ गोपाल ने विषयक स्वीकृति दे दी। परन्तु पहले गुरु भाइयो के बंगले कार्य को ही प्राथमिकता दी जावे। मंदिर एवं कालोनी निर्माण हेतु श्री गणेश के लिए १००१/- माँ गोपाल ने श्री मोटा भाई को दिए और कहा कि अच्छा मुहर्त देखकर मंदिर का निर्माण शुरू करे । इसके साथ ही माँ गोपाल ने कालोनी निर्माण के सम्बन्ध में कुछ विशेष निर्देश दिये ।
  1. मंदिर के लिए चंदा नहीं लेना
  2. किसी का नाम लिखी वस्तु मंदिर में नहीं लगानी।
  3. मंदिर में मूर्ति नहीं लगानी।
  4. मंदिर में गुम्बज,घंटा,घड़ियाल,ध्वज,त्रिशूल,कलश आदि नहीं लगाना ।
  5. मंदिर दुसरो के देखने हेतु नहीं बनाना ।
  6. मंदिर केवल भक्तो के भजन हेतु बनाना
  7. मंदिर में केवल पांच फोटो लगाना।
  8. मंदिर में पुजारी के रहने के लिया पीछे कि दीवार एक हो।
  9. रसोई में छोटी अलमारी व फ्लेट रेक हो।
  10. बंगले के बडे कमरे में बड़ी अलमारी हो।
        इस प्रकार वर्ष १९६८ में कालोनी एवं मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। इस पूरे परिवेश को गोपाल कालोनी का नाम दिया गया। मंदिर निर्माण पूर्ण होने के पश्चात् मंदिर उदघाटन के अवसर पर माँ गोपाल को मंदिर ले जाने का प्रस्ताव किया गया तो माँ गोपाल द्वारा इंकार करते ही फ़रमाया:- "मुझे किसे बताना है कि कीर्ति मिली है जब परमात्मा है तो में हो ही नहीं सकता । यह मंदिर और यह आवास गृह तो अपने भक्त बालको के लिए एक बहुत बड़ी सोगात है ।" 
        इस प्रकार माँ गोपाल ने दिनांक ०७-०२-१९७५ को अपनी सांसारिक यात्रा पूर्ण कर विश्राम हेतु स्वधाम प्रस्थित हुई। तथा आज माँ श्री के ही घर को ही "ऋषिकुल मंदिर" में परिवर्तित कर जन्त्राल में भव्य मंदिर का निर्माण किया गया । जहा अपनी शारीरिक हयाती के बिना ही बड़ी संख्या में भक्त गण गुरु पूर्णिमा व इसी प्रकार हर पूर्णिमा पर आते रहते है।
        झाबुआ के "श्री गोपाल मंदिर" तथा लिमखेडा के" श्री घनश्याम" मंदिर एवं ग्राम बावड़ी के के मंदिर "ऋषिकुल आश्रम बावड़ी" में भी ऋषिकुल मंडल के भक्त दर्शन , सत्संग का लाभ उठाते है । इस प्रकार प .पूज्य श्री मोटा भाई ( श्री विश्वनाथ जी त्रिवेदी) द्वारा जीवन पर्यंत तक प्रभु कि सेवा कि गयी व दिनांक 22-०8-1991 को उनका देहावसान हुआ। तत्पश्चात सेवाभार एवं पूजा अर्चना का कार्य मोटा भाई के जयेष्ट सुपुत्र श्री रविन्द्र नाथ जी त्रिवेदी द्वारा आरम्भ कि गई जिन्होने पूरी निष्ठा व आस्था के साथ प्रभु कि सेवा कि एवं वर्ष २००७ में उनका देवलोकगमन हुआ । वर्तमान में मंदिर कि पूजा अर्चना प .पूज्य स्व पं श्री रविन्द्र नाथ जी के जयेष्ट सुपुत्र पं रूपक त्रिवेदी द्वारा कि जा रही है ।
 
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