! प्रातः कालीन आरती !
जय श्री राम गुरू तम जय परिब्रह्म गुरू
जय परिब्रह्म गुरू तम जय परिब्रह्म गुरू
जगपालन कर्ता विभु व्यापक छो स्वामी पभु व्यापक छो स्वामी।
अजब कृति रहो अलगा अजब कृति रहो अलगा कामी निश्कामी।। जय ।।1।।
अम बालक नी विनती अंतर मा धरजो प्रभु अंतर मा धरजो ।
आप स्वरूप ओळखावी आप स्वरूप ओलळावी ताप त्रिविध हरजो।। जय ।।2।।
जप तप संयम साधन योग विदिन जांणु प्रभु योग विदिन जांणु ।
सहु थकी भक्ति मोटी सहु थकी भक्ति मोटी अनुभवे परमाण्युं।। जय ।।3।।
सुर सनकादिक षेश ध्यान तमारूं धरे प्रभु ध्यान तमारू धरे ।
भक्ति थकी भुधर जी, भक्ति थकी भुधर जी भक्ताधीन रहे।। जय ।।4।।
अविनाषी नी आरती भव मां थी तारे प्रभु भय मांथी तारे।
भव दुखमांथी उगाारी भव दुख मांथी उगारी लावे सुख आरे।। जय ।।5।।
श्लोक पुष्पांजलि
कर्पुर गौरं करूणावतांर संसारसारं भुजगेंद्रहारम्।
सदावसंतम् हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।1।।
मंगलम् भगवानविश्णु मंगलं गरूडध्वजः।
मंगलम् पंुडरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः।।2।।
सर्वमंगलमांगल्ये षिवेसर्वार्थसाधिके ।
षरण्येन्न्यंबके गौरि ! नारायणि नमोस्तुते।।3।।
ब्रह्मानंन्दं परम सुखदं केवलं ज्ञान मूर्तिम
द्वदांतीतं गगन सदृष तत्वमस्यादि लक्ष्यं। एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी साक्षिभूतम्।
भावातीतं त्रिगुण रहितं सदगुरू तं नमामि।।4।।
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विश्णु गुरूर्देवो महेष्वरः।
गुरूरेव परमात्मानम् भव संसार तारकम्।।5।।
ध्यान मुलं सदगुरोर्मुतिः पुजामुलं सदगुरूः पदम्।
मंत्रमुलं सदगुरूर्वाक्यं मोक्षमुलं,सदगुरूः कृपा।।6।।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,त्वमेव बंधुष्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,त्वमेव सर्वं ममदेव देव।।7।।
असित गिरी समं स्यात् कज्ज्लं सिंधु पात्रे,सुरूतरूवर षाखा लेखनी पत्र मुर्वी।
लिखित यदि गृहीत्वा षारदा सर्वकालम्,तदपि तव गुणानामीष पारं न याति।ं।8।।
मुकं करोति वाचालं पंगु लड्घयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।9।।