पुष्पांजलि
देवाधिदेव !सर्वेश्वर ! विश्वस्वामी ।।
पुष्पांजलि अरपिये सहुशीश नामी ।।
भक्ति वडे खुश थतां सहुशास्त्र बोले ।
सॉचा उरे प्रगटता सहु वेद बोले।।1।।
मारा थकी नथी थती व्याकुल भक्ति।
के आपना सहु गणो नथी एवी युक्ति।।
ज्यां त्यां निभाव करी सो मुज ताप कापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो ।।2।।
नातो विवेक प्रगटयो मम उर स्वामी।
ना षांति ने उपरति तणि झांखी जाणी।।
ना अंतरे तम तणाज जपाय जापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो।।3।।
ना कोई दि तम परे बहु प्रेम आव्यो।
रोमांच नैत्र जल थी नथी मे भिजाव्या।।
जीवात्म भाव हरी सौ मुज ताप कापो।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो।।4।।
सर्वात्मभाव न धर्यो प्रभु ने रिझावा।
ने विषरूप विषयो थकी ना लाजया।।
ना पात्र मात्र विनती सुणी सुख आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्मत स्थापो।।5।।
श्रद्धा तणुं बल नथी हजी काईं मारूं।
ना अंतरे धीरज नुं षुभ चिह्म धारूं।।
जाणंु तमारूं शुभ नाम निज शरण आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो ।।6।।
निष्काम कर्म करवा थकी श्रेय थाषे।
पापो बंधा पलक मां बळी भस्म थाशे ।।
मारा उरे सतत् एज सुबुद्धि आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।7।।
रेरे ! गुरू हजी नथी तमने पिछाण्या।
हजुए मुमुक्ष पद मां नथी नाथ आण्यां।।
शुं वर्णवुं मम उरे जीव नो कळापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।8।।
आ विश्व ना अणुं अणुं महिं आप पोते।
ने आप एक अखिलेष महत्स्वरूपे।।
ए ज्ञानने मम उरे दृढता थी स्थापो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।9।।
! देवाधिदेव ! सर्वेश्वर ! विश्वस्वामी !
।। पुश्पांजलि अरपिये सहुशीश नामी।।
।। सदगुरू देव की जय।।
। । अखंडानंद की जय। हरि गुरू संत की जय।।
।। जय जय सीताराम।।
।। नमः पार्वतीपते हर हर हर महादेव।।
पुष्पांजलि अरपिये सहुशीश नामी ।।
भक्ति वडे खुश थतां सहुशास्त्र बोले ।
सॉचा उरे प्रगटता सहु वेद बोले।।1।।
मारा थकी नथी थती व्याकुल भक्ति।
के आपना सहु गणो नथी एवी युक्ति।।
ज्यां त्यां निभाव करी सो मुज ताप कापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो ।।2।।
नातो विवेक प्रगटयो मम उर स्वामी।
ना षांति ने उपरति तणि झांखी जाणी।।
ना अंतरे तम तणाज जपाय जापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो।।3।।
ना कोई दि तम परे बहु प्रेम आव्यो।
रोमांच नैत्र जल थी नथी मे भिजाव्या।।
जीवात्म भाव हरी सौ मुज ताप कापो।
लावी कृपा मुज शिरे वर हस्त स्थापो।।4।।
सर्वात्मभाव न धर्यो प्रभु ने रिझावा।
ने विषरूप विषयो थकी ना लाजया।।
ना पात्र मात्र विनती सुणी सुख आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्मत स्थापो।।5।।
श्रद्धा तणुं बल नथी हजी काईं मारूं।
ना अंतरे धीरज नुं षुभ चिह्म धारूं।।
जाणंु तमारूं शुभ नाम निज शरण आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो ।।6।।
निष्काम कर्म करवा थकी श्रेय थाषे।
पापो बंधा पलक मां बळी भस्म थाशे ।।
मारा उरे सतत् एज सुबुद्धि आपो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।7।।
रेरे ! गुरू हजी नथी तमने पिछाण्या।
हजुए मुमुक्ष पद मां नथी नाथ आण्यां।।
शुं वर्णवुं मम उरे जीव नो कळापो ।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।8।।
आ विश्व ना अणुं अणुं महिं आप पोते।
ने आप एक अखिलेष महत्स्वरूपे।।
ए ज्ञानने मम उरे दृढता थी स्थापो।
लावी कृपा मुज शिरे वरहस्त स्थापो।।9।।
! देवाधिदेव ! सर्वेश्वर ! विश्वस्वामी !
।। पुश्पांजलि अरपिये सहुशीश नामी।।
।। सदगुरू देव की जय।।
। । अखंडानंद की जय। हरि गुरू संत की जय।।
।। जय जय सीताराम।।
।। नमः पार्वतीपते हर हर हर महादेव।।